Politicians



शोभा उदर ही तृप्ति नहीं करती
न ही मन की शांति करती
वो क्यों पत्थर की नक्काशी जैसी
ललित-लवंग लता होकर
क्यों खुसबू नहीं देती ।

सिंहासन पर बैठा राजा
मोर के पंख से सिंहासन सजाता है
बाघ मार कर घर सजाता है
हिरन मार कर दीवाल सजाता है
नदी में लाश बहाकर न्याय करता है।
वो खाल उतार कर जूता पहनता है ।


षड़यंत्र कर देश चलता है।
बोलता कुछ और करता कुछ और है।
हम नदी के उस पार के लोग है...
हम वही करेंगे जो यथार्थ लगेगा ।
हम बहुत दिन से बंदी थे...
अब हमें गगन नसीब हुआ है ।
छत का लोभ दिखाकर
दाना दिखा कर
पैर में बेड़ियाँ डालने की कोशिश न कर
हम तेरे झांसे में नहीं आने वाले
देख चुके हैं तेरा रूप
तू खून पीता है रात में
दिन में तिलक लगा कर घूमता है ।

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