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Showing posts from 2017
कृष्ण! तुम होते तो शायद, इतने लोगों की मौत नहीं होती गोवर्धन अपने हाथों में उठा लेते अपने लोगों ली रक्षा करते। पर देखो आज के जन प्रतिनिधि को जो हेलीकॉप्टर में उड़ते हैं, साईकिल में दौरा लगते हैं, ऐरावत में चढ़े अपने लोगों को डूबते देखते हैं। और रात के अँधेरे में लालटेन लिए,  कोई गरीबों का हाल जानने  कोई गरीबों का मसीहा नहीं निकलता। सभी वाहट्सएप्प की मैसेज चेक करने में ब्यस्त हैं। अगर तुम होते तो शंखनाद करते आखिर हम गरीब अपने कुटिआ से निकल पहाड़ पर चढ़ जाते, तुम्हें पहाड़ उठाने  की जरुरत नहीं पड़ती। चरणकमल  में कीचड़ न लगे हरी घांस की कार्पेट पर पैर रख लोग नौका चढ़ते हैं, गरीबों का दुःख देखने वो सैर पे निकलते हैं। तुम होते तो हम एक टुकड़ा कपडा, और सर ढकने की छत, और एक बित्ता पेट के लिए चूड़ा और गुढ़ की प्रतिक्षा नहीं करते। तुम्हारे यहाँ हमें माखन और दही मिलती। कृष्ण  हमें यूँ ही मौत के गोद में नहीं सोना पड़ता। कृष्ण ! काश तुम होते।
क्रांति ! क्रांति ! की ही गूंज है चारों और , प्राणों के भीतर, अंतरात्मा  के अंदर , आओ भाइयों हम याद करें उन वीर शहीदों को ! धुप हो या हो गर्मी, बारिश हो या हो ओला , ठंडी हो या हो शीत, भूख हो या हो तृष्णा , दुश्मनों को खदड़ने पूर्वजों ने जंग किये थे ! जंगल हो या हो पहाड़, नदी हो या हो नाला , धरती हो या हो मिट्टी, जल हो या हो सागर , दुश्मनों को ख़त्म करने पूर्वजों ने उमंगें भरे थे ! जाति हो या हो धर्म, संस्कृति हो या हो सभ्यता , रीती हो या हो रिवाज, भाषा हो या हो समाज, संरक्षण और सँवारने को योद्धाओं ने जोश भरे थे! तीर हो या हो कमान,भाला हो या हो तलवार, टांगा हो या हो छुरी , लाठी हो या हो ढाल , बच्चे हो या हो महिला सभी ने युद्ध के मैदान में कूद पड़े थे ! सिंगा हो या हो तुरही, करताल हो या हो झांझ , मादल हो या हो नगाडा, रागड़ा हो या हो घंटी , दुश्मनों को नष्ट करने पूर्वजों ने खून की होली खेले थे !

আপুঞ আম দ মেনাম গেয়া

হাসা দ হাসা গে তাঁহে কানা , হয় দ হয় ! মেনখান মানে বদল এনা , যে হিলক আপুঞাক্ জাং বাহা আতু কেৎ বহই !! দাক্ দ দাক্ তাঁহে কানা , সেঙ্গেল দ সেঙ্গেল ! মেনখান মানে বদল এনা , যে হিলক ইঙ এমাদে মোচা রে সেঙ্গেল !! তরচ দ তরচ তাঁহে কানা , আঙরা দ আঙরা ! মেনখান মানে বদল এনা , নোওয়া ধুরি ধারতি রে মেসা এন তোরা !! অত দ অত গে তাঁহে কানা , ধারতি দ ধারতি ! সানাম রেয়াক মানে বদল এনা , যে হিলক আপুঞাক্ ইড়িচ এনা জীবন বাতি !! সেরমা দ সেরমা তাঁহে কানা , ইপিল দ ইপিল ! তিহিঙ দ গোটাই বিলীন এনা , গিতিল হং গিতিল, রিমিল হং রিমিল !! ধারতি আম দম বাহা গেয়া , সেরমা আম দম সাজাক্   গেয়া , আপুঃঙ  অকা রেঙ ঞামে , অকা রেদ অহাই  ইঙ পাঞ্জা কেয়া? সিং চাঁদ রূপ রে ডিগ -ডিগ ! নিন্দা চাঁদ কুনামী তেরদেচ্ !! আপুঞ আম দ মেনাম গেয়া , গোটা ধারতি রে পেরেচ্ !! বাহা রেয়াঃ সং রে মেনাম , হয় রেয়াঃজিওয়ী দাঁড়ে রে !! তলাস মেরে জিওয়ী রে মেনাম , আঢ়াঙ  তাম জীব-জিয়ালী রে !!  ____________________________ 

राम किंकर बैज (चितर बडोही )

राम किंकर बैज (चितर बडोही ) शिल्पी ओका ओका आमेम ताराम लेक , तिहिंग ओना धुढ़ी सानाम सोना आकान। ओका ओका आमाक उदगार दाक जोरो लें तिहिंग ओना हिरा मणि रे फेराओ आकान।    

बाहा पर्व : संताल इतिहास और कहानी:

बाहा पर्व : संताल इतिहास और कहानी: बाहा का अर्थ है "फूल"।  बसंत /फाल्गुन ऋतु को बाहा बोंगा के नाम से भी जानते हैं। सम्पूर्ण सृष्टि जब बसंत /फाल्गुन के आगमन से बृक्षों की शाखाओं में नव पल्लव और पुष्प सुशोभित हो उठते हैं और पहाड़ों  में शाल, शिमूल, महुआ और पलास के फूलों से दिक् दिगंतर भर जाते हैं।  संतालों के जीवन में नए उमंग और उल्लास सा संचार होने लगता है। भारतीय संताल ऋतु चक्र में माघ माह को प्रथम दर्जा प्राप्त है, इसीलिए माघ प्रथम को संताली नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। माघ के बाद वसंत ऋतु प्रवेश करने लगती है।  फाल्गुन पूर्णिमा को बाहा कुनामी के नाम से मनाया जाता है। भारतीय भूमंडलीय परिप्रेक्ष्य में संताल जातियों के संस्कृति,जीवन-मूल्यों एवं वास-स्थलों  में अन्य जातियों के सांस्कृतिक समन्वय और सहस्तक्षेप के वजह से संताल अपने देवताओं के मर्यादा और रीति - रिवाजों की विशुद्धता को लक्ष्य रखते हुवे बाहा पर्व या तो पहले मानते हैं या तो उस दिन के बाद। बाहा पाप से मुक्ति और धर्म अनुशीलन का पर्व है। अशत से  सत्य की और अंधकार से ज्योति की और तथा मृत्यु से अमरत्व की और जाने

अंडे का फंडा

कितने पंजर झांझर हुए , कितने हवस की आग में चढ़ गए। मौत के हिसाब लिखते लिखते , इतिहास के पैन भर गए। दोहन होती ये धरती , और आदिवासी इनके निवाले बनते गए. कवरा गोह की तरह ये सरकार , गांव के गांव चाट गयी। ताकि अपने विकास के अंडे दे सके , और लोगों को झांसे में रखने के लिए सिर्फ आडम्बर के बिल, बिल पे बिल खोदते गए। रंग बहुत देखे हैं हमने, इन अंडो के , फुट के बहार आते हैं सिर्फ जमीं को बंजर बनाने के लिए। अपनी  जहरीली काली जीभ से , फसलों को क्षति करने  के लिए। यूरेनियम के कचड़े जल-जीवन-जमीन में अपनी जहर घोलने के लिए। पर विश्वास है इस गोह के कब्र जल्द ही खुदेंगे और इनके अंडे का फंडा का द इंड होगा।