Sculptor Sri Binod Singh (मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद सिंह)
मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद कुमार सिंह (Sculptor Sri Binod Kumar Singh)
और उन्होंने हमेशा से यह भी कहे हैं की अपनी पात्रता बढ़ाओ।
एक उत्तम गुरु के रूप में मैं समझता हूँ कि शिक्षण ही सिर्फ शेष लक्ष्य नहीं हैं, आप अपने वातावरण को भी कैसे शुद्धि रखते हैं यह भी बहुत जरुरी है।
कृति या मूर्तिशिल्प अपने आप जन्म ले लेगी अगर आप एक बार खुद को जन्म दे दिए या परिमार्जित कर लिए। ये मेरे शब्द नहीं हैं, ये कहीं न कहीं गुरूजी के अलौकिक ज्ञानविंब में से ही प्रस्फुटित हुई हैं।
लोग खान-पान से ही केवल जिन्दा नहीं रहते, बल्कि विचार और सिद्धान्त से भी जीवित रहते हैं। उन्ही एक मनीषियों में से आचार्य जी आते है।
आनंद,अत्यानंद और परमानन्द की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन फिर भी कोई व्यक्ति तृण की एक ओश बिंदु को देख कर आनन्दित होता है, तो कोई कमल पत्रदल को देख कर और कोई पुष्प को देख कर एवं कोई नहीं भी हो सकता है
। आचार्य जी हमेशा से ही प्रकृति की नैसर्गिक सौंदर्य से रसाभिभूत/ओतप्रोत रहे हैं और उनकी बागवानी कौशल में उनका यह प्रेम दिखता है।
हमारे गुरूजी के कार्यों में एक तेज है , ओज है, ओप है, विद्युत् है, ऊर्जा है , चमक है, सौंदर्य है। सूक्ष्म होकर भी मूर्त हैं। जड़ होकर भी चेतनशील हैं। जिसकी आकार भले ही लघुआकृति में प्रकट हुई हो, लेकिन उसमे विशाल हिमालय सी भव्यता है और सम्पूर्णता है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
कलाकृति की आत्मा को स्थूलता में अवतरित करने की जो गूढ़ रहस्य है वो मैंने आचार्य श्री बिनोद कुमार सिंह की कृति और व्यक्तित्व से ही जाना है। मैंने कितना सीखा ये तो मैं भी नहीं जानता पर आशा करता हूँ कि जब तक आचार्य जी हैं, हमें मार्गदर्शित करते रहें और कला जगत को नित नविन रूपों से सुसज्जित करते रहें।
मैं गुरूजी के श्री चरण कमलों में नमन करता हूँ !
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