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Sculptor Sri Binod Singh (मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद सिंह)

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मूर्तिशिल्पी आचार्य  श्री बिनोद कुमार  सिंह (Sculptor Sri Binod Kumar Singh) शिक्षक के रूप में एक अंतिम गुरु होंगे, जो गुरुकुल की पुरानी परंपरा को जीवंतता दिए हैं।  जिन्होंने न सिर्फ अपनी कर्मों से बल्कि वाणी से भी हमें सिखलायें हैं कि मूर्ति शिल्प बनाने के पहले और साथ-साथ खुद के चरित्र और व्यव्हार को भी तराशना अति आवश्यक होता है।  मूर्ति निर्माण और चरित्र निर्माण दोधारी तलवार जैसी होती है।  यही आपके व्यक्तित्व और भविष्य को संवारती है।  ज्ञान तभी किसी व्यक्ति विशेष में ठहर सकती है जब उसमे शील हों। जिसमे शील नहीं, वह व्यक्ति विद्वान भी नहीं।  और उन्होंने हमेशा से यह भी कहे हैं की अपनी पात्रता बढ़ाओ।  एक उत्तम गुरु के रूप में मैं समझता हूँ कि शिक्षण ही सिर्फ शेष लक्ष्य नहीं हैं, आप अपने वातावरण को भी कैसे शुद्धि रखते हैं यह भी बहुत जरुरी है।  कृति या मूर्तिशिल्प अपने आप जन्म ले लेगी अगर आप एक बार खुद को जन्म दे दिए या परिमार्जित कर लिए। ये मेरे शब्द नहीं हैं, ये कहीं न कहीं गुरूजी के अलौकिक  ज्ञानविंब में से ही प्रस्फुटित हुई हैं।