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Showing posts from 2011

Sohrai, Harvesting Festival

Sohrai is the biggest and most sacred festival of the santal tribe. So we belives it as grandiose as an elephant. Long ago the God of mountain had blessed the santal people with cattle for agriculture and livelihood. He told them to respect cow as mother and bull as father because a cow provides you with milk and a bull works hard to support your agriculture. This festivalis celebrated in remembrance of that divine occurence , every year after Kali Puja and befor Makar Sankranti. In this festival we pay homage to our Gods of Mountain and our ancestors and also worship our cattle. This film took me almost one year to finish... This documentary film deals with the richness of the tribal culture and art. Nicelly painted and drawn wall murals and relief works. Their song and art form are derived from the nature. Last year in January I went my village and captured this wonderful feastival. I am dedicating this film to my grand mother and my grand father.

शब्द रस

आकाश एक दम नीला था पत्ते बिलकुल पीले सुखी काली सी टहनियां और भूरे लालरंग की युक्लिप्तुस की डाल उर्धव्गति में जाती हुई और दाहिने कान में कौवे की काव - काव दूर उड़ता गेस्ट हाउस की और कबूतर की आवाज बाएं कान के पास कबूतरी की आवाज मेरे एकांत मन में एक छवि उकेर रही थी । और मैं एक महाकवि सा कुछ पुराने शब्द जोड़ रहा था । ये पल सिर्फ - हवा में डोलता एक पंख बता सकता है पंखुड़ियों में बैठा भौंरा बता सकता है घांसों पर बैठे ओश ही बता सकते हैं मैं तो बस गौण हूँ शब्द अपने में कुछ रस घोल रहे थे... - साहेब राम टुडू 

Moti gire the

कुछ मोती गिरे थे घांस पर  कुछ बदल  घिरे थे आकाश में  कुछ खाली पल थे  बिताने के लिए अपने पास में।  पंछी  ने कहा कुछ गाकर  चील ने कहा चीत्कार कर  तोते ने कुछ मिठास घोले  कुछ मय थे अपने पास में  dhundlati si ek yad jo aab ekant ke pedon tale patjhad ke saman jhad-jhad gir rahe the kuch sunhale se yaden hain batash me. kuch dhundli si padi hui parchhaiyon me kuchh log hain khali bag me ek khali kursi baiti hai aaj bhi laut aane ke meri aas me. or ye chamakte sunhale moti surya sarikhe mor ne chug liye or aaj bhi main baitha hun us ped ke tale kuch yadon ke pile patton ko liye karpas me...

kundankari

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15000 B C की बात है । एक आदिमानव अपनी प्रेमिका को याद कर रहा है। प़र इन दोनों के प्रेम कहानी का विल्लैन है लड़की का बाप। और प्रेमी प्रेमिका से मिलने के लिए इतना व्याकुल हुआ कि उसने उसके लिए सन्देश भेजा । मगर ये सन्देश जिसको नहीं पहुंचना था उसी को मिला। (प्रेमी का आवाज लड़की के बाप सो सुने देता है- "लीलू लीलू ".. इसके बाद लड़की का बाप भी लड़की के आवाज में प्रेमी को पुकारता है-" राजू.. राजू "...) और प्रेमी गलत आवाज को प्रेमिका का आवाज समझ दोड़ पड़ा । और जो हुआ वो इतिहास हो गया । Message undelivered Love lost. 14oo AD मजनू अपने लैला को लव लैटर भेजा। मगर रस्ते में .... Message sending failed Love failed. 2011 A D ब्रोअद्बेन्द , इन्टरनेट, मोबाइल फ़ोन, आइपेद , अस ऍम अस , ऍम ऍम अस , विडियो चेट, फेशबुक , ऑरकुट, ट्विट्टर... अभी मीना टीना जीना सबको सिर्फ एक क्लिक में सबको मेसेज ... Long live love Long live technology.

santal hero

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from true grid

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donot miss me

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Cats

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Landscape

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Terracotta Horse of NID

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Village near Swaminarayan temple

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Jassy

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Bull

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Terracotta sculpture

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Resume

Resume Name: Saheb Ram Tudu Date of Birth: 15th January 1984 Place of Birth : Bhurkundabari, Purulia, West Bengal Educational Qualification: NET, Sculpture, 2008 Animation film design, Post-graduate Diploma programme in design, National Institute of Design, Paldi, Ahmedabad, India, 2008-2010 Master in Fine Arts, Gold Medal, Sculpture, Banaras Hindu University, U.P. 2006-08 Participations : Unni (Short animation Film), Official selection in Anifest India, 2010 The Animation Society of India, India 27th State Lalit Kala Academy Art Exhibition, U.P. 2007-08 Inter University East zone, youth festival, Clay modeling, Manipur University, Canchipur-2004-05 Ahmadabad International Arts Festival, 2011 Yatra , Jaipur International Film Festival, 2011, Jaipur ASIFA India, 2011 Films: Short Animations Films 1. Unni , Clay Animation 2. Dhawani , Clay on glass 3. Arth , Stop-motion 4. Themb , Pixilation 5. And the World will Live as One , (3D and 2D animation) 6. Yatra , Sand A

showreel

रस्ते

कई रस्ते बदले कई मंजिलें बदली कई मकाने बदले कई झरोखे बदली । पर दिल में एक ही इरादा रहा जो कि मेरी कभी नहीं बदली वक्त बदली खवाहिशें बदली जरूरतें बदली सामान बदली पर एक चीज है जो हमेसा साथ रहा वो थी तेरी याद, नहीं बदली सुबह बदली शाम बदली मौसम बदली रातें बदली। पर कुछ खुशियाँ थी दी हुई तुम्हारी वो कभी नहीं बदली। दुकान बदला दफ्तर बदले गाड़ी बदली मैंने चश्मा भी बदला पर नजर मेरी कभी नहीं बदली।

मंजिल

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मधुर स्मृति

आज भी मधुर स्मृति इस कदर बसे हुए हैं जैसे नदी का ठंडा पानी हो जैसे जंगल का कोई हवा हो खुसबू कोई पंकज सरोवर से आती हुई हवा हो। पर जो छवि ह्रदय पटल पर बसी है॥ वो आज भी मुझे इतने प्रिय हैं कि शुष्क धरा में वो हरियाली देख रहा हूँ सुखी शाख में पत्रदल देख रहा हूँ। खामोश पत्थर में भी एक मूरत देख रहा हूँ इतनी खुशियाँ भरी है धरा में के हर घट में अमृत देख रहा हूँ।

सपना

सोये हुए आँखों में किसी ने दृश्य डाल के चले दिए कह गए क्षितिज रेखा कुछ आक रही है मेरे लिए और मैं सोते गया किसी खुशनुमा स्वप्न में और जब आंखे खोली तो बहुत सुनसान थी ये दुनिया mere चारों और रेगिस्तान था बड़ी तलासने के बाद कहीं गुफा मिला और फिर से मैंने अपने क्षितिज में छवि आकना शुरू किया ...

अरमान

कुछ अरमान कहने के लिए दिल में नहीं रहे कुछ छुपाने के लिए कुछ भीगे से कुछ घास के शिशिर कण से आज धीरे से जमीं पर गिर गए बड़ी दूर कुछ शब्द सुनाई दे रहे थे सुनने कि कोशिश किया पर सुन नहीं पाया और खो गया मैं अपने ही दुनिया में कुछ कड़वाहट सा दिल में लिए हुए जहर नील रंग का घोले हुए आज क्षितिज की और देखता कि कुछ अमृत कहीं से आ गिरे ... पर दिल धुंआ से भरा हुआ दम कहीं घुटता सा लग रहा है नाग अपना विष फैला रही हो और मैं मौन चित पड़ा हूँ जैसे उम्र का एक -एक क्षण बड़े मुस्किल से गुजर रहें हों ... मुस्कुराने के पल कम थे और मैं अडिग पत्थर सा युहीं जी रहा था जैसे मैं कोई हिमालय का शिखर हूँ पर शिखर के बर्फ भी कभी कभी पिघल जाया करते हैं...

हंसी हो गयी पत्थर

हंसी हो गयी पत्थर आँखे सजल हो उठी शांत जो था हृदय आज गर्जन करने लगा । उठती गिरती हृदय कि लहरें टकरा गयी किनारों से  और  पहली बूंद जो गिरा जमीं पार बाढ़ आ गयी धरा पर और  रोंदने कि कोशिश के साथ आग कि लपट कि तरह फैल गयी ये खाली आसमान में एक हुंकार  मारा  और  ढँक दिया पृथिवी सिर्फ ये तो एक उफान था ये उफान बार- बार मेरे दिल में उठती रहती हैं जब दिखती है लाखों चेहरे  कोयले कि धुल में सने  और  तेज धुप में जलते जैसे कोई गरम किया कढ़ाई में   मछलियों सा इन्हें डुबो रही है  उन तपती  हुई खदानों के बीच बनी बस्तियां  सांसो में घोलती हुई एक जहरीली गैस तब इन आँखों से लहू की धरा फुट पड़ती है। मन करता है उखाड़ फ़ेंक दूँ उन हांथों को जो ये सब खेल खेलता है...

चाँद-२

मैंने चाँद से एक टुकड़ा अम्बर माँगा उसने आधा अम्बर फाड़ कर मुझे दिया मैंने उनके कागज के कस्तियाँ बनायीं कागज के फुल, पंक्षी ,पंखें तथा जहाज बनाया तारों को मैंने कश्तियों में भर कर खूब ब्यापार किया आज मैं चाँद दोनों साथ साथ खेलते हैं चाँद मेरे कस्ती से खेलता है तो मैं उनके तारों से....

चाँद

हजार टुकड़े किये मैंने चाँद के जला दिए फिर मैंने आग में आज जाने क्यों ????????? उनकी फिर याद आ गयी पास फैला राख को देखा तो खाक में मैं खड़ा था और अन्दर एक चाँद घोर निशा में छट-पटा रहा था....

एक मंदिर

एक मंदिर बनाने में सदियों लग गयी कई कारीगर आये कई शिल्पी आये कई वास्तुविद और कई रातें मैंने सोया नहीं कई रातें मैंने खाए नहीं । आज आंखे फिर जागती हैं कि कहीं बनी मंदिर न टूट जाये...

स्मृति

हल्की सी बारिश हुई हल्की सी घटा छाई थी कुहाशे में डूबा शहर हलकी सी याद कोई आई थी। आहट जो हुई बहार खिड़की पर किसी की परछाई थी बाहर देखा झांक कर चाँद पर तुम ही मुस्कुरायी थी। जलता एक लौ सा मंदिर के एक दीवट पर जगता है आज भी मेरा मन जाने क्यों तेरे आहट पर। चित-विछत होकर भी एक योद्धा सा सोता है मन एक -एक लहू जो टपके तेरे ही स्मृति में अर्पण।

Bus of NID

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Art and craft center of NID

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Nightscape of our institute...

Eams Plaza of NID

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Inside NID we have nice landscapes & lots fo greenery ...

tree

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flowerpot

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Ek mandir

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In the infinite sea shore, An empty bottle tossed, Is duly returned. But again there are those Who take leaves, never to retrace their steps back.

money plant

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sweet moment

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In NID , we have a lovely old monument. I just tried to catch the feel of this beautiful monument. You can feel the greenery that surrounds this monument. This morning I tried to catch the important moment of my life.

pigeons and net

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Bush

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खामोश चाँद

दिल एक काली रात है चंदा उठता-गिरता साँस की नाव । आज ये नाव क्यों रुक गया ? पूछा तो तारे रो पड़े धागे से मोती टूट पड़े । बोले - इस पर सवार पथिक विलीन हो गया ... इसलिए अब ये नाव अपने जगह से हिलता नहीं... दिल एक काली रात है चाँद खामोश पड़ी एक नाव है ...

ठहरो

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तुम ठहरो , तुम ने माचिस भी नहीं पकड़ी होगी कभी। ये जो आग तुम लगा रहे हो , ये अंतिम विदा की आग है...

sweet birds

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दृष्टी

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सारा जीवन अँधा रहा और जब दृष्टी आई मैं अपने ही दृष्टी से जल गया।

अकाल

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कलश में रखे जल सुख गएँ हैं । कबूत्तर के लिए बनाये घट के घर आज खाली पड़े हैं । हमारी छप्पर पार आज कल गौरेया नहीं बैठती क्योंकि आकाल के पड़ने से घर में अनाज नहीं और पंछी कहीं दूर अनाज की तलाश में उड़ गयें हैं।

स्याही

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स्याही सा फैल जाता है मन में जब तुम्हें याद करता हूँ पता नहीं सुबह कब होगी और इसी इंतिजार में ऑंखें बंद हो जाती है...

छायाकार

वो तेरा नंगी तस्वीरें खींचता है और तुम कुछ नहीं बोलते ... पता है ? वो तेरे तस्वीरों को बेचता है। और तू नंगा ही खड़ा रह जाता है।

bird

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लोग कहतें हैं मैं सोने की चिड़ियाँ हूँ मुझे मेरा अहमियत पता नहीं ये मेरी ताक में हैं किसी दिन पिंजड़े में डाल कर मैं रोवुंगा और ये लोग आनंद मनाएंगे...

योग

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उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६- ५॥ सवयंम से अपना उद्धार करो, सवयंम ही अपना पतन नहीं। मनुष्य सवयंमही अपना मित्र होता है और सवयंम ही अपना शत्रू।

Politicians

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शोभा उदर ही तृप्ति नहीं करती न ही मन की शांति करती वो क्यों पत्थर की नक्काशी जैसी ललित-लवंग लता होकर क्यों खुसबू नहीं देती । सिंहासन पर बैठा राजा मोर के पंख से सिंहासन सजाता है बाघ मार कर घर सजाता है हिरन मार कर दीवाल सजाता है नदी में लाश बहाकर न्याय करता है। वो खाल उतार कर जूता पहनता है । षड़यंत्र कर देश चलता है। बोलता कुछ और करता कुछ और है। हम नदी के उस पार के लोग है... हम वही करेंगे जो यथार्थ लगेगा । हम बहुत दिन से बंदी थे... अब हमें गगन नसीब हुआ है । छत का लोभ दिखाकर दाना दिखा कर पैर में बेड़ियाँ डालने की कोशिश न कर हम तेरे झांसे में नहीं आने वाले देख चुके हैं तेरा रूप तू खून पीता है रात में दिन में तिलक लगा कर घूमता है ।

Mahatma Gandhi

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हा हा हा...

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दो बहुत ही खातरनाक इन्शान काम सुभानाल्लाह ! डांस सुभानाल्लाह ! एक, देखन में छोटन लागे घाव करे गंभीर .... दूसरा, देखन में कमजोर लागे काम करे solid...

अमित

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अमित कुमार दास खाने का बहुत ही शौकिन chiken तो मत पूछ ६ लोंगो का अकेले खा जाता है। ये मोटा नहीं है ऐसा उसका मानना है ये healthy है. he loves to drink isiliye बगल में पानी का बोतल है। प्यार से जो बनाता है वो तो अजूबा बनता है कैनवास रंगना तो पल भर का काम है। खिचड़ी अच्छा बना लेता है॥ इसके नाम का एक .................................... .................................................???? है ................

Nalini Bhutia

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ये है गेम मास्टर नीनू Apple तो हमेशा गोद में रहता है। फार्मिंग तो बाएं हाथ का खेल है आज के लिए इतना ही काफी , डर नहीं लग रहा ???

आतंक

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सर पर कोई मंडरा रहा है हर शाख पर उसी का डेरा है आकाश भी उसका है धरती भी उसकी है संभल-संभल कर गुजना यारों अब तो अपने ही गलियों में bambari का डर रहता है।

हर शाम

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हर शाम को जब सूरज सोने के लिए जाता है NID का अम्बर पाखी से भर जाया करता है। संगीत की सुरों से भर जाती है इसकी आंगन । पछी की चहचहाहट दिक्दिगंत भर जाती है उसी का एक दृश्य है यह ...

खिड़की से बाहर

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खिड़की से बाहर एक दुनिया है मैंने वो दुनिया देखा नहीं । मेरे आँखे जैसे बंद शिशु के माँ के गर्भ से निकला नहीं ।।

स्मृति

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मुझे पता है तुम वक्त के गर्भ में चले गए हो लेकिन जो बीज तुमने छोड़ दिए हैं वो पेड़ बनने के लिए आतुर है।

लाल रंग

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इतिहास का मुझसे और मुझसे लाल रंग का गहरा रिश्ता है। इसी वजह से आज भी इन्सान डर-२ कर जीता है। लहरें तो उठतें हैं आज भी सागर में पर ओठों तक आते आते ये इन्सान पीने से डरता है। पता है उसका मंजिल मौत है फिर भी बे फिक्र जीने से डरता है। खौफ को बाहर निकाले तो कैसे अपने दुनिया से ही डरता है। माटी पे दो पग धरे तो कैसे खुद पर विश्वास करने से डरता है। एक चिंगारी की देर होती है और सारा जंगल खाक में मिल जाता है।

सृजनहार

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कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने वर्ना सुखी डाल नहीं हिलती । हर पतझड़ के बाद हर शाख पर पुष्प नहीं खिलती। कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने वर्ना हर पंख पतवार नहीं होता अथाह व्योम समुद्र में युहीं ग़ोता लगाना मुमकिन नहीं होता। कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने मिटटी की देह धड़कता कैसे रक्त -घृत से प्रज्वोलित ये ज्योति जलती कैसे ...

पतंग

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पतंग से पूछना जख्मो को हवा देना किसे कहते हैं महफिलें रंगीन हों और चाँद से दूर रहना किसे कहतें हैं।

चौकीदार काका

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कल जब मैं हॉस्टल पहुंचा तो हॉस्टल की सीढ़ी पर काका को गर्दन टेढ़ा किये सोते हुए पाया गोद में मोबाइल फ़ोन से ये गाना आ रहा था- "तुम्हे याद करते करते जाएगी रैन सारी तुम ले गए हो अपने संग नीद भी हमारे।" सुबह हुई काका जगे हुए थे पूछा- आप दिन भर करते क्या हैं? बोले -शर्ट -पैंट बेचता हूँ। तुम्हे भी लेना है? मैंने बोला- नहीं काका । तो फिर पूछा क्यों ? कल आप थके हुए ज्यादा लग रहे थे...

कौन बैठा है ?

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वो देखो मौन बैठा है। शाख पर। वो देखो कौन बैठा है ? शाख पर। तुम भी हो इसके निशाने पर जरा बच के जरा छुप के भाई वो जीता है तुम्हे ही मारकर । चीत्कार सुनी होगी तुमने बड़ी तीखी है उसकी । पकड़ बहुत गहरे हैं पंजे हैं पैनी उसकी ।। जरा संभल कर आँखे मिलाना वो आँखों की गोंटियाँ खेलता है।

coffee

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पीले पत्ते झड़ रहे नीम के तिनके गिर रहे हैं । सुने सुने ऋतु में हवा भी कुछ कह रही । कॉफी को ओठों से लगाये मुझे किसी पुराने दोस्त की याद आ गयी । उनके हाथों के बने कॉफी काफी कड़े हुआ करते थे । पहली बार, पहली घूंट लेने के बाद मन में कुछ तो गाली बका था। पर इतने प्यार से बनाया था की पीना ही पड़ा था । चाय पीने के बाद ये चीज पीना मेरे लिए एक नया सा अनुभव था और दो सालों तक एक नशा सा बन गया था । मैं उन्हें कॉफी के लिए याद करता था . वह बोध-भुछु था बड़ा ही शांत स्वाभाव का था गुस्सा करता था तो मुझे दादाजी का याद आता था मैं उनसे पूछता था मैं कि पिछले जन्म में क्या था ? कहता "तुम बकरे थे ।" मैं कहता था ,नहीं मैं इन्सान ही था। और वह कहता - नहीं। वो खुद को कहता की वह इन्सान ही था कई जन्मों से। और आज तक वह इन्सान होने की अभ्यास कर रहा है। मैं बहुत सालों के बाद समझा की सच में मैं अभी भी जानवर ही हूँ . इन्सान बनना तो बहुत दूर की बात है। मैं भी नीम के पेड़ की तरह बार बार अपने पत्ते छोड़ नए पत्ते ग्रहण करता हूं । पर कभी भी पूर्ण हरा नहीं हो पता और ये क्रम चलता रहता है। कॉफी मुझे अभी भी उसकी याद द

faded poem

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sanchar bharti

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अनकही

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मुझे नहीं लगता कुछ कहना चाहिए पर बिन कहे अगर हम सुन लेतें तो ये बहुत बड़ी बात होगी। कभी - कभी खुशी सब कुछ कह जाती है....

sharmili

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ये शर्मीली सी औरत मुझे संताली नारी की याद दिलाती है। पर ये खामोश होकर यही कहती है... मैं आजाद हूँ मैं शांति हूँ, और मुझे किसी की गुलामी पसंद नहीं। मेरे अपने स्वप्ने हैं अपने ख्वाब हैं , मुझे किसी की आँखों की कोई जरूरत नहीं ।

मछली बाजार

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