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Showing posts from February, 2012

मेरी परछाई

मेरी परछाई मुझसे लम्बी क्यों बीच शहर में खड़ा पथिक अपनी परछाई से पूछता है मैं तो एक ही हूँ मेरी हजारों परछाई क्यों ? मुझे जानने वाले हजारों यहाँ अपने कहलाने वाले इतने कम क्यों ? मैं हजारों पंख लेके आया था आज एक पंख क्यों ? गांव से आते-आते रस्ते में मेरे पैर गीले थे आज वो सुख गए हैं चलते चलते ...

पसीने की कीमत

किसान अँधेरे में उठ के जाता अँधेरे में लौट आता और उजाले वालों को उनकी पसीने कि बूंद की कीमत का पता नहीं, साल भर पसीने बहाए अपनी देह तपाये और उजाले वाले उसकी कीमत तय करे ? टमाटर ५० पैसे किलो मुली १ रु किलो चावल ५ रु किलो धनिया मुट्ठीभर  रूपया हीरा निकले कोई और गले में डाले कोई और नहीं चाहिए ऐसी मजदूरी धुल फांके कोई और मूल खाए कोई और हम अपनी खेत में अपना सोना खुद उगायेंगे - मर जाये चाहे शहर वाले हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें पसीने कि बूंद की कीमत का कद्र नहीं... -साहेबराम टुडू 

कोयला अँधेरा..

पीने को पानी नहीं बीच शहर में फौवारा पेड़ बिजली के पग पग चमकती आँखों के खम्बे और दूर गांव में जाओ कोयला अँधेरा.. -साहेबराम टुडू