आतंक



सर पर कोई मंडरा रहा है
हर शाख पर उसी का डेरा है

आकाश भी उसका है
धरती भी उसकी है
संभल-संभल कर गुजना यारों
अब तो अपने ही गलियों में
bambari का डर रहता है।

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