Posts

Showing posts from 2013

एक भविष्यद्वक्ता

एक भविष्यद्वक्ता ने मुझसे कहा- " जानते हो साहेब ! तुम्हारी जाति 25 वर्षों में विलुप्त होने वाली है। " मेरे आँखों के सामने मुझे लगा  ये व्यक्ति मेरे मुख पर थूक रहा है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा। मैं जानता हूँ कितनी पुरानी संस्कृति है हमारी फिर रही है मारी  मारी कहीं उसकी बात सच न हो जाये ! मैं  तो चाँद सौदागर कि तरह लोहे का घर बनाने चला हूँ। पर मुझे विश्वास है भविष्यद्वक्ता के  हिसाब से मरेगी  जरुर लेकिन पुनर्जन्म भी लेगी। मैं नव विवाहित संगी हूँ। सति बेहुला कि तरह मैं अपनी संस्कृति को कभी नहीं छोडूंगा। चाहे मुझे जितना कष्ट क्योँ न उठाना पड़े। और विश्वास है मैं उसे जीवित फिर से देख पाउँगा। इससे ज्यादा वैभव और समृद्ध। जिस तरह चाँद सौदागर ने पाया था। -साहेब राम टुडू 

आत्मा

मैंने पढ़ा है। आत्मा कभी नहीं मरती , न सड़ती , न गलती , न सूखती है , न जलती है। पर मैंने एक संस्कृति के आत्मा को मरते देखा है। क्या मैंने कोई दुःस्वप्न देखा या कोई हकीकत है ? और मैं जानता  हूँ ये सपना हर दिन भारतवर्ष के लोग देखते हैं। -साहेब राम टुडू

एक इतिहास

एक इतिहास मिटने जा रहा हूँ जो मेरे वर्तमान को बनाने से रोकती है कोई जो मुझे बार बार मेरा इतिहास दिखता है। कोई है जो मुझे बार बार मेरा इतिहास स्मरण करता है। है एक भारत ! जो मुझे हमेशा अंधकार में रखना चाहता है पर वो जानता नहीं मैं स्वयं आग हूँ और आग को अंधकार घेर नहीं सकती मैं उज्जवल और दीप्तमान हूँ। और मुझे पता है जहाँ मैं स्थापित हो जाऊ वहीँ से मेरा वर्त्तमान शुरू हो जाता है और मुझे मेरा इतिहास दिखाने  कि जरुरत नहीं क्योंकि वो इतिहास मेरा खुद का बनाया नहीं दूसरों के बनाये गए हैं। 

शिशु

मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का गर्व जो  पिरामिड सा खड़ा है चूर चूर चूर हो जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का साहस जो चीनी दीवाल सा खड़ा है टूट टूट टूट बिखर जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का धैर्य जो असीम महासागर सा लहरा रहा है रेत में गिरे पसीने सा विलीन हो जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो मंदिर का पुरोहित धर्म का नाशक समझ प्रसाद पात्र में बिष मुझे प्रदान  करेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो मैं मैं नहीं रहूँगा ज्यों अग्नि कुंड में मिलके तिनका भी आग में बदल जाता है। वो कोई और नहीं एक शिशु है जो चरनी में लेटा है असीम आह्लाद लिए मुस्कुरा रहा है।

जब कभी विचार मरता है

जब कभी विचार मरता है जब कभी एक समाज मरता है तो इस मरे हुए लाश  को खाने के लिए गिद्ध चारों और से जमा हो जाते  हैं। वैसे ही कुछ हाल संथाल समाज का है। इसे मार -मार  कर खाने वालों की गिद्ध की  संख्या बढ़ गयी है। आज कल वो जिन्दा गायों पर भी आक्रमण करना शुरु कर दिया है

जब वो बीमार थी

जब वो बीमार थी मैं गया था उससे मिलने। मैं उनके खाट  के पास बैठा था। उसकी शरीर शाहजहां के अंतिम तस्वीर सी पतित हो रही थी। मैं उन्हें बुद्ध कि प्रतिमा भेंट की जो सारनाथ से लाया था। प्रार्थना में कभी जीसस को तो कभी बुद्ध को याद किया। हे भगवन ! ये चंगी हो जाये। वो चंगी हुई थी एक मास के लिए भगवन ने सुनी थी मेरी प्रार्थना ! पर अचानक एक दिन वो नहाई धोयी और अच्छे कपडे पहनी। सो गयी उसी पुरानी  खाट  पर और उसके बाद कभी नहीं उठी। तब से न जाने मेरा मन अब किसी के लिए खास प्रार्थना  नहीं करता। एक दम घुट सा गया है , कहीं मछली के कांटे सा फंस गया है। अब जिह्वा किसी के लिए खास प्रार्थना नहीं करता।

पारश पत्थर

पारश पत्थर मुझे एक पारश पत्थर मिला था , और मैं मूर्ख ! सदा ही पैरों के मैल उससे साफ करता रहा। By Saheb Ram Tudu

संग में मेरे

संग में मेरे जब देश दूर होता है भाषा दूर होती  है। तो लगता है माँ - बाप दूर हो गए। जब हवा दूर होती है , बताश दूर होता है। तो लगता है भाई - बहन दूर हो गए। शून्य में ताकता एक इन्सान अपने आप से पुछता है। क्या था मेरा और क्या रह गया संग में मेरे … By- Saheb Ram Tudu

Lugu buru dorson pore

Image
Lugu buru  (Holiest place of tribes), I heard about this mountain in a folksong and  prayers from  village storytellers. I visited this wonderland on 17th Nov, after seen this I realized it is not only a giant hill, it has the spirit of our ancestors, steel can be hear their voices, sounds of hunting, drums and song. 

धुंद

प्रातः माटी की खुशबू धान कि झुकी हुई बालियां शीत - शिशिर में नहाये  ये बयार कुछ तो रस घोल गए मौन ये वादियां ! ट्रैन के खिड़की से मैंने  दूरतक देखे थे कोहरे की  एक चादर लपेटी कोई खड़ी  थी पंकज कुसुम की  सुगंध लिए कुछ जानी कुछ अनजानी सी। रंगीन ब्याध - पतंग सा मन भ्रमर मंडरा रहा था शिशिर शिक्त अधखुले कुमुदिनी पर कुछ तो भंवर पड़े थे हिय के पोखर में आँखे कब सो गई पता ही नहीं चला प्रियतमा  ! मैं स्वप्न में था या निद्रा  में ध्यान  ही नहीं जब तेरी स्टेशन आई , कुछ छण के लिए मेरी आँखे तो खुली पर जब तक तुम्हें पहचान पाता, तुम धुंद में कहीं तुम खो चुकी थी।

स्वप्न

स्वप्न एक स्वप्न नशा बन गया। सालों पहले इन आँखों ने पिया था। आज बंद आँखों ने चख लिया। पंख सा हल्का ये शरीर आकाश में तैरता रहा। पद्म कुसुम सा क्षीरसागर में डोलता रहा। आज ओष्ठ पत्र पर शिशिर के कुछ बूंद गिरे। नुपुर कि ध्वनि क्षितिज से सुनाई दी। मैंने तो तरकश में बिष बाण रखे थे। आज अनायास ही सहस्र कुसुम दल में बदल गई। - साहेब राम टुडू

सुर

बहुत दिन पहले एक संगीत मैंने खो दिया था हड्डपा और मोहनजोदड़ो  के सभ्यता में... आज उसे मैंने फिर से पाया है किन्तु उस संगीत का सुर मैं भूल गया हूँ। इस संगीत का सुर न खोज कर आर्य और अनार्य के बीच लड़ाई शुरू हो गई - ये मेरा है ! ये मेरा है ! ये मेरा है ! -साहेबराम टुडू 

शांत प्रशांत महासागर

लोग कभी मरना नहीं चाहता , जवान कभी बुड्ढा नहीं होना चाहता। उसी तरह समय भी अतीत में नहीं वर्तमान बनकर वापस आता है। जो शांत बैठा समुद्र है वो फिर से मंथन करने बैठता है। लोग अचंभित होतें हैं कि शांत प्रशांत महासागर आज हिमालय की तरह खड़ी होकर आकाश क्यों ढँक रही है ?

पत्थर

पत्थर ने कभी नहीं सोचा , वो भगवान बन जाएगा। लोग उसमे सर टिकाएंगे या अपना सर फोड़ डालेंगे। आग निकालेंगे या बाग सजायेंगे। वो हमेशा ही पत्थर रहा , सब बना बनाया है इन्सान का। उसने चाहा तो छत पर लगाया उसने चाहा तो चौखट पर लगाया। कभी बुत तो कभी ताबूत  बनाया। हाँ, पत्थर ने इन्सान को आश्रय और आहार जरुर दिया। शायद इसी की कृतज्ञता आज भी वो अदा कर रहा है। 

पाप प्रच्छालन

लोग पाप धुलने के लिए गंगा में जाने कितने बार डूबकी लगाते हैं ? पर पाप कभी  धुलता ही नहीं। शायद सर्फ़ एक्सेल से धुल जाई। गंगा मुस्कुराती और कहती है - रे मुरख ! मुझे पता है तू घर जाकर फिर से नहाने वाला है तो फिर क्यों यहाँ ढोंग करता है। _साहेबराम टुडू 

६६ वर्ष

६६ वर्ष हम नंगे सोये, भूखे और प्यासे रहे। मेरी कोख में पलते गर्भस्त शिशु  पैदा होने से पहले मर गया। कोई देबी माँ नहीं आई। आज एक कहाँ से दयामयी माँ प्रकट हुई ? मेरे हाथ में एक रुपया  डाल  के चली गयी। बोली कल मैं फिर आऊँगी इसी तरह तब तक के लिए हाथ फैलाये खड़ी  रहना। मैं गर्मी में , बरसात में, ठिठुरते ठंड में खड़ी रही कि वो करुणामयी माँ दया की बारिश करेगी आज वो आई। जो रुपया उसने कल मेरे हाथ में दिए थे वापस लेके चली गई। -साहेब राम टुडू

मैं कौन हूँ ?

हे भगवान ! बताओ मैं कौन हूँ ? क्या मैं बिरसा हूँ ! क्या मैं सिद्धो हूँ ! क्या मैं कान्हु हूँ ! या फिर मैं तिलका हूँ ! बताओ मैं कौन हूँ ? क्योंकि मेरे अन्दर भी ऐसे ही आग धधक  रही है। -साहेब राम टुडू 

एक फाराओ !

एक फराओ ! वीरों ! मजदूरों और गरीबों !  के कंकाल के उप्पर अपना पिरामिड बनाया। प्रजा के हक़ मार-मार कर अपना परचम लहराता रहा। आज वो गरीबों के हक़ की अनाज , अम्बर और आवास के लिए विधान संहिता बना रही है। -साहेब राम टुडू 

एक शहंशाह ने

एक शहंशाह ने बेमिशाल (अद्वितीय) ताजमहल बनाया और कारीगारों के हाथ काट दिया कि कोई दूसरा ताजमल खड़ा न कर पाय। अभी भी कुछ उनके वंशज रह गए हैं। जो लोगों के हाथ काट - काट कर ताजमहल बना रहें हैं।  

Storied House

Storied House https://vimeo.com/21745846 

Indigenous tribe

Image

ईसा ने कहा है -

ईसा ने कहा है - जिसे है उसे और दिया जायेगा और जिसके पास कुछ नहीं उससे वो भी ले लिया जायेगा जो उसके पास है। शायद इसीलिए आज आदिम जातियों के पास जो है वो भी छिना जा रहा है और वो उसे दिया जा रहा है जिसके पास पहले से सुलभ है। गरीबों के पास से तो उनके तन के कपडे और पेट की रोटी भी छिनी जा रही है। सफ़ेद पुतले जो तुम्हें काले नजर आते हैं इनकी देह की रंग चुराई हुई है। अचरज मत होना दिन दूर नहीं , ये जाति मरी हुई अवस्था में कलकत्ते की संग्रहालय में दिख जाय। मिस्र की उस सड़ी हुई लास की तरह ! भारत में पत्थरों की पूजा होती है। जिन्दा इन्सान के आगे  ये लोग चावल के चंद दाने फेंक के चले जाते हैं। ईसा की बात सच निकली …

पहचान

पहचान बंगाल के लोग पूछते हैं, दक्षिण भारतीय हो ? नहीं, मैं यहीं का हूँ। बंगाली तो नहीं लगते ! मैं कहता हूँ -संथाल हूँ। ओ क्रिस्चियन हो ! नहीं, मैं संथाल हूँ। क्रिस्चियन नहीं हो तो क्या हो ? हमारी अपनी कोई पहचान नहीं रह गई क्या ? कल लोग पहाड़ से पूछेंगे तुम क्या हो ? कल लोग पेड़ से पूछेंगे तुम क्या हो ? कल लोग नदी से पूछेंगे तुम क्या हो ? इससे पहले की  लोग मरा हुआ समझे मैं बता देना चाहता हूँ मैं एक शाश्वत परमात्मा का अंश हूँ प्रकृति मेरी माँ है सूर्य मेरा पिता ! इससे बड़ा मेरा कोई धरम नहीं और इससे बड़ी  कोई मेरी आस्था नहीं। -साहेब राम टुडू 

ईशा से पूछना था

ईशा से पूछना था मैं क्यों क्रूसित हुआ आपके साथ ?

कोलकाता की याद में

इमारतें ऊँची हो गई आसमान को पैरों तले कर लिया चाल में उड़ान आ गई , पर हमारी मति थोड़ी धीमी रह गई। बारिश के पानी हमें हमारी असलियत रास्तों पर दिखा रही है , कि अपनी गंदगी हमने बहाया नहीं। नहाने के लिए द्वार पर जमा कर रखा है। ___साहेब राम टुडू 

Exploration with vegetable color

Image

एक यमुना

मैं ने एक ब्यक्ति से पूछा दादा ! ये कौन सी नदी है? उसने कहा , ये नदी नहीं है , हमलोगों का बहाया कचरा है । तभी मुझे याद आया ... इसलिए आज यमुना एक नाला बन गई , और आज ये नाला बरबस जाने क्यों मेरे लिए एक यमुना ! -साहेब राम टुडू 

कुछ शब्द

चुने थे कुछ फुल, हाथ मेरे लाल हुए , कुछ थे शब्द उसके कहे , आज हंसी के गुलाल हो गये, ये क्यों कल की बात लगे, जबकि उम्र बीते अरसे हो गये। - साहेब राम टुडू 

मुचात नापाम

Image

बाहा दारे बूटा लातार रे

सोंधार सों उल बाहा दारे बूटा लातार रे इंग मा मिनांग गाते आमाक उयहर रे। देला से ! देला से ! देला से ! हिजुके में ! इनक अचुर बिहर ओन्तोर बागवान रे।  

नियमगिरी (Niyamgiri )

उन लोंगो ने पेड़ काटे  और पहाड़  को खोद कर एक यूरेनियम कारखाना  लगाया। अब सूर्य उगता है पहाड़ के पीछे से नहीं , बल्कि कारखाने  के पीछे से , अब पंछियों के चहचाने की आवाज नहीं आती मोरों की आवाज, मोरनियों के आवाज और जंगली कपोत के आवाज अब केवल मैं सुन सकता हूँ मशीनो की आवाज। और देखता हूँ एक काली बिषैली नागीन फन फाड़े आकाश को ढँक रही है। यह बताने के लिए की हमने एक गलत बीज बो दिया है। और अब बहुत देर हो चुकी है। नदी का रंग जहाँ नीली थी, अब काली हो चुकी है , जानवर उसका पानी नहीं पीते मछलियाँ उसमे साँस नहीं लेती, अब संथाल युवतियां उसमे नहीं नहाती क्योंकि वह बीमारी का जड़ हो गया है जो कभी जीवनदायिनी थी। संथालों ने ऐसा नहीं बनाया किया किसने ? किया वेदांता  ने कर दिया मैली  जीवन को नरक कर दिया नियमगिरी को. - साहेब राम टुडू 

Articles on my diploma film "Naayo"

Image

college

http://www.indiacollegesearch.com/p.php?iframe_link=http://www.jaduniv.edu.in http://www.nitdgp.ac.in/campus.php