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Showing posts from February, 2011

खामोश चाँद

दिल एक काली रात है चंदा उठता-गिरता साँस की नाव । आज ये नाव क्यों रुक गया ? पूछा तो तारे रो पड़े धागे से मोती टूट पड़े । बोले - इस पर सवार पथिक विलीन हो गया ... इसलिए अब ये नाव अपने जगह से हिलता नहीं... दिल एक काली रात है चाँद खामोश पड़ी एक नाव है ...

ठहरो

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तुम ठहरो , तुम ने माचिस भी नहीं पकड़ी होगी कभी। ये जो आग तुम लगा रहे हो , ये अंतिम विदा की आग है...

sweet birds

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दृष्टी

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सारा जीवन अँधा रहा और जब दृष्टी आई मैं अपने ही दृष्टी से जल गया।

अकाल

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कलश में रखे जल सुख गएँ हैं । कबूत्तर के लिए बनाये घट के घर आज खाली पड़े हैं । हमारी छप्पर पार आज कल गौरेया नहीं बैठती क्योंकि आकाल के पड़ने से घर में अनाज नहीं और पंछी कहीं दूर अनाज की तलाश में उड़ गयें हैं।

स्याही

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स्याही सा फैल जाता है मन में जब तुम्हें याद करता हूँ पता नहीं सुबह कब होगी और इसी इंतिजार में ऑंखें बंद हो जाती है...

छायाकार

वो तेरा नंगी तस्वीरें खींचता है और तुम कुछ नहीं बोलते ... पता है ? वो तेरे तस्वीरों को बेचता है। और तू नंगा ही खड़ा रह जाता है।

bird

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लोग कहतें हैं मैं सोने की चिड़ियाँ हूँ मुझे मेरा अहमियत पता नहीं ये मेरी ताक में हैं किसी दिन पिंजड़े में डाल कर मैं रोवुंगा और ये लोग आनंद मनाएंगे...

योग

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उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६- ५॥ सवयंम से अपना उद्धार करो, सवयंम ही अपना पतन नहीं। मनुष्य सवयंमही अपना मित्र होता है और सवयंम ही अपना शत्रू।

Politicians

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शोभा उदर ही तृप्ति नहीं करती न ही मन की शांति करती वो क्यों पत्थर की नक्काशी जैसी ललित-लवंग लता होकर क्यों खुसबू नहीं देती । सिंहासन पर बैठा राजा मोर के पंख से सिंहासन सजाता है बाघ मार कर घर सजाता है हिरन मार कर दीवाल सजाता है नदी में लाश बहाकर न्याय करता है। वो खाल उतार कर जूता पहनता है । षड़यंत्र कर देश चलता है। बोलता कुछ और करता कुछ और है। हम नदी के उस पार के लोग है... हम वही करेंगे जो यथार्थ लगेगा । हम बहुत दिन से बंदी थे... अब हमें गगन नसीब हुआ है । छत का लोभ दिखाकर दाना दिखा कर पैर में बेड़ियाँ डालने की कोशिश न कर हम तेरे झांसे में नहीं आने वाले देख चुके हैं तेरा रूप तू खून पीता है रात में दिन में तिलक लगा कर घूमता है ।

Mahatma Gandhi

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हा हा हा...

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दो बहुत ही खातरनाक इन्शान काम सुभानाल्लाह ! डांस सुभानाल्लाह ! एक, देखन में छोटन लागे घाव करे गंभीर .... दूसरा, देखन में कमजोर लागे काम करे solid...

अमित

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अमित कुमार दास खाने का बहुत ही शौकिन chiken तो मत पूछ ६ लोंगो का अकेले खा जाता है। ये मोटा नहीं है ऐसा उसका मानना है ये healthy है. he loves to drink isiliye बगल में पानी का बोतल है। प्यार से जो बनाता है वो तो अजूबा बनता है कैनवास रंगना तो पल भर का काम है। खिचड़ी अच्छा बना लेता है॥ इसके नाम का एक .................................... .................................................???? है ................

Nalini Bhutia

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ये है गेम मास्टर नीनू Apple तो हमेशा गोद में रहता है। फार्मिंग तो बाएं हाथ का खेल है आज के लिए इतना ही काफी , डर नहीं लग रहा ???

आतंक

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सर पर कोई मंडरा रहा है हर शाख पर उसी का डेरा है आकाश भी उसका है धरती भी उसकी है संभल-संभल कर गुजना यारों अब तो अपने ही गलियों में bambari का डर रहता है।

हर शाम

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हर शाम को जब सूरज सोने के लिए जाता है NID का अम्बर पाखी से भर जाया करता है। संगीत की सुरों से भर जाती है इसकी आंगन । पछी की चहचहाहट दिक्दिगंत भर जाती है उसी का एक दृश्य है यह ...

खिड़की से बाहर

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खिड़की से बाहर एक दुनिया है मैंने वो दुनिया देखा नहीं । मेरे आँखे जैसे बंद शिशु के माँ के गर्भ से निकला नहीं ।।

स्मृति

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मुझे पता है तुम वक्त के गर्भ में चले गए हो लेकिन जो बीज तुमने छोड़ दिए हैं वो पेड़ बनने के लिए आतुर है।

लाल रंग

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इतिहास का मुझसे और मुझसे लाल रंग का गहरा रिश्ता है। इसी वजह से आज भी इन्सान डर-२ कर जीता है। लहरें तो उठतें हैं आज भी सागर में पर ओठों तक आते आते ये इन्सान पीने से डरता है। पता है उसका मंजिल मौत है फिर भी बे फिक्र जीने से डरता है। खौफ को बाहर निकाले तो कैसे अपने दुनिया से ही डरता है। माटी पे दो पग धरे तो कैसे खुद पर विश्वास करने से डरता है। एक चिंगारी की देर होती है और सारा जंगल खाक में मिल जाता है।

सृजनहार

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कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने वर्ना सुखी डाल नहीं हिलती । हर पतझड़ के बाद हर शाख पर पुष्प नहीं खिलती। कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने वर्ना हर पंख पतवार नहीं होता अथाह व्योम समुद्र में युहीं ग़ोता लगाना मुमकिन नहीं होता। कुछ तो रचें हैं रचने वाले ने मिटटी की देह धड़कता कैसे रक्त -घृत से प्रज्वोलित ये ज्योति जलती कैसे ...

पतंग

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पतंग से पूछना जख्मो को हवा देना किसे कहते हैं महफिलें रंगीन हों और चाँद से दूर रहना किसे कहतें हैं।

चौकीदार काका

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कल जब मैं हॉस्टल पहुंचा तो हॉस्टल की सीढ़ी पर काका को गर्दन टेढ़ा किये सोते हुए पाया गोद में मोबाइल फ़ोन से ये गाना आ रहा था- "तुम्हे याद करते करते जाएगी रैन सारी तुम ले गए हो अपने संग नीद भी हमारे।" सुबह हुई काका जगे हुए थे पूछा- आप दिन भर करते क्या हैं? बोले -शर्ट -पैंट बेचता हूँ। तुम्हे भी लेना है? मैंने बोला- नहीं काका । तो फिर पूछा क्यों ? कल आप थके हुए ज्यादा लग रहे थे...

कौन बैठा है ?

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वो देखो मौन बैठा है। शाख पर। वो देखो कौन बैठा है ? शाख पर। तुम भी हो इसके निशाने पर जरा बच के जरा छुप के भाई वो जीता है तुम्हे ही मारकर । चीत्कार सुनी होगी तुमने बड़ी तीखी है उसकी । पकड़ बहुत गहरे हैं पंजे हैं पैनी उसकी ।। जरा संभल कर आँखे मिलाना वो आँखों की गोंटियाँ खेलता है।

coffee

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पीले पत्ते झड़ रहे नीम के तिनके गिर रहे हैं । सुने सुने ऋतु में हवा भी कुछ कह रही । कॉफी को ओठों से लगाये मुझे किसी पुराने दोस्त की याद आ गयी । उनके हाथों के बने कॉफी काफी कड़े हुआ करते थे । पहली बार, पहली घूंट लेने के बाद मन में कुछ तो गाली बका था। पर इतने प्यार से बनाया था की पीना ही पड़ा था । चाय पीने के बाद ये चीज पीना मेरे लिए एक नया सा अनुभव था और दो सालों तक एक नशा सा बन गया था । मैं उन्हें कॉफी के लिए याद करता था . वह बोध-भुछु था बड़ा ही शांत स्वाभाव का था गुस्सा करता था तो मुझे दादाजी का याद आता था मैं उनसे पूछता था मैं कि पिछले जन्म में क्या था ? कहता "तुम बकरे थे ।" मैं कहता था ,नहीं मैं इन्सान ही था। और वह कहता - नहीं। वो खुद को कहता की वह इन्सान ही था कई जन्मों से। और आज तक वह इन्सान होने की अभ्यास कर रहा है। मैं बहुत सालों के बाद समझा की सच में मैं अभी भी जानवर ही हूँ . इन्सान बनना तो बहुत दूर की बात है। मैं भी नीम के पेड़ की तरह बार बार अपने पत्ते छोड़ नए पत्ते ग्रहण करता हूं । पर कभी भी पूर्ण हरा नहीं हो पता और ये क्रम चलता रहता है। कॉफी मुझे अभी भी उसकी याद द

faded poem

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sanchar bharti

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अनकही

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मुझे नहीं लगता कुछ कहना चाहिए पर बिन कहे अगर हम सुन लेतें तो ये बहुत बड़ी बात होगी। कभी - कभी खुशी सब कुछ कह जाती है....

sharmili

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ये शर्मीली सी औरत मुझे संताली नारी की याद दिलाती है। पर ये खामोश होकर यही कहती है... मैं आजाद हूँ मैं शांति हूँ, और मुझे किसी की गुलामी पसंद नहीं। मेरे अपने स्वप्ने हैं अपने ख्वाब हैं , मुझे किसी की आँखों की कोई जरूरत नहीं ।

मछली बाजार

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