मधुर स्मृति

आज भी मधुर स्मृति इस कदर बसे हुए हैं
जैसे नदी का ठंडा पानी हो
जैसे जंगल का कोई हवा हो
खुसबू कोई पंकज सरोवर से आती हुई हवा हो।

पर जो छवि ह्रदय पटल पर बसी है॥
वो आज भी मुझे इतने प्रिय हैं कि
शुष्क धरा में वो हरियाली देख रहा हूँ
सुखी शाख में पत्रदल देख रहा हूँ।

खामोश पत्थर में भी
एक मूरत देख रहा हूँ
इतनी खुशियाँ भरी है धरा में
के हर घट में अमृत देख रहा हूँ।

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