अरमान

कुछ अरमान कहने के लिए
दिल में नहीं रहे कुछ छुपाने के लिए
कुछ भीगे से
कुछ घास के शिशिर कण से
आज धीरे से जमीं पर गिर गए

बड़ी दूर कुछ शब्द सुनाई दे रहे थे
सुनने कि कोशिश किया पर
सुन नहीं पाया और खो गया मैं अपने ही दुनिया में

कुछ कड़वाहट सा दिल में लिए हुए
जहर नील रंग का घोले हुए
आज क्षितिज की और देखता
कि कुछ अमृत कहीं से आ गिरे ...

पर दिल धुंआ से भरा हुआ
दम कहीं घुटता सा लग रहा है
नाग अपना विष फैला रही हो
और मैं मौन चित पड़ा हूँ
जैसे उम्र का एक -एक क्षण बड़े मुस्किल से गुजर रहें हों ...

मुस्कुराने के पल कम थे
और मैं अडिग पत्थर सा युहीं जी रहा था
जैसे मैं कोई हिमालय का शिखर हूँ
पर शिखर के बर्फ भी कभी कभी पिघल जाया करते हैं...


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