स्मृति

हल्की सी बारिश हुई
हल्की सी घटा छाई थी
कुहाशे में डूबा शहर
हलकी सी याद कोई आई थी।

आहट जो हुई बहार
खिड़की पर किसी की परछाई थी
बाहर देखा झांक कर
चाँद पर तुम ही मुस्कुरायी थी।

जलता एक लौ सा
मंदिर के एक दीवट पर
जगता है आज भी मेरा मन
जाने क्यों तेरे आहट पर।

चित-विछत होकर भी
एक योद्धा सा सोता है मन
एक -एक लहू जो टपके
तेरे ही स्मृति में अर्पण।

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