जब वो बीमार थी

जब वो बीमार थी
मैं गया था उससे मिलने।
मैं उनके खाट  के पास बैठा था।

उसकी शरीर शाहजहां के
अंतिम तस्वीर सी पतित हो रही थी।
मैं उन्हें बुद्ध कि प्रतिमा भेंट की
जो सारनाथ से लाया था।

प्रार्थना में कभी जीसस को
तो कभी बुद्ध को याद किया।
हे भगवन ! ये चंगी हो जाये।
वो चंगी हुई थी एक मास के लिए
भगवन ने सुनी थी मेरी प्रार्थना !

पर अचानक एक दिन
वो नहाई धोयी और
अच्छे कपडे पहनी।
सो गयी उसी पुरानी  खाट  पर
और उसके बाद कभी नहीं उठी।

तब से न जाने
मेरा मन अब किसी के लिए
खास प्रार्थना  नहीं करता।

एक दम घुट सा गया है ,
कहीं मछली के कांटे सा फंस गया है।
अब जिह्वा किसी के लिए
खास प्रार्थना नहीं करता।

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