एक फाराओ !

एक फराओ !
वीरों ! मजदूरों और गरीबों !
 के कंकाल के उप्पर अपना पिरामिड बनाया।
प्रजा के हक़ मार-मार कर अपना परचम लहराता रहा।

आज वो गरीबों के हक़ की अनाज ,
अम्बर और आवास के लिए विधान संहिता बना रही है।

-साहेब राम टुडू 

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