कोलकाता की याद में

इमारतें ऊँची हो गई
आसमान को पैरों तले कर लिया
चाल में उड़ान आ गई ,
पर हमारी मति थोड़ी धीमी रह गई।

बारिश के पानी
हमें हमारी असलियत
रास्तों पर दिखा रही है ,
कि अपनी गंदगी हमने बहाया नहीं।

नहाने के लिए
द्वार पर जमा कर रखा है।

___साहेब राम टुडू 

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