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Showing posts from August, 2011
मधुर स्मृति
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आज भी मधुर स्मृति इस कदर बसे हुए हैं जैसे नदी का ठंडा पानी हो जैसे जंगल का कोई हवा हो खुसबू कोई पंकज सरोवर से आती हुई हवा हो। पर जो छवि ह्रदय पटल पर बसी है॥ वो आज भी मुझे इतने प्रिय हैं कि शुष्क धरा में वो हरियाली देख रहा हूँ सुखी शाख में पत्रदल देख रहा हूँ। खामोश पत्थर में भी एक मूरत देख रहा हूँ इतनी खुशियाँ भरी है धरा में के हर घट में अमृत देख रहा हूँ।
अरमान
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कुछ अरमान कहने के लिए
दिल में नहीं रहे कुछ छुपाने के लिए
कुछ भीगे से
कुछ घास के शिशिर कण से
आज धीरे से जमीं पर गिर गए
बड़ी दूर कुछ शब्द सुनाई दे रहे थे
सुनने कि कोशिश किया पर
सुन नहीं पाया और खो गया मैं अपने ही दुनिया में
कुछ कड़वाहट सा दिल में लिए हुए
जहर नील रंग का घोले हुए
आज क्षितिज की और देखता
कि कुछ अमृत कहीं से आ गिरे ...
पर दिल धुंआ से भरा हुआ
दम कहीं घुटता सा लग रहा है
नाग अपना विष फैला रही हो
और मैं मौन चित पड़ा हूँ
जैसे उम्र का एक -एक क्षण बड़े मुस्किल से गुजर रहें हों ...
मुस्कुराने के पल कम थे
और मैं अडिग पत्थर सा युहीं जी रहा था
जैसे मैं कोई हिमालय का शिखर हूँ
पर शिखर के बर्फ भी कभी कभी पिघल जाया करते हैं...
हंसी हो गयी पत्थर
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हंसी हो गयी पत्थर आँखे सजल हो उठी शांत जो था हृदय आज गर्जन करने लगा । उठती गिरती हृदय कि लहरें टकरा गयी किनारों से और पहली बूंद जो गिरा जमीं पार बाढ़ आ गयी धरा पर और रोंदने कि कोशिश के साथ आग कि लपट कि तरह फैल गयी ये खाली आसमान में एक हुंकार मारा और ढँक दिया पृथिवी सिर्फ ये तो एक उफान था ये उफान बार- बार मेरे दिल में उठती रहती हैं जब दिखती है लाखों चेहरे कोयले कि धुल में सने और तेज धुप में जलते जैसे कोई गरम किया कढ़ाई में मछलियों सा इन्हें डुबो रही है उन तपती हुई खदानों के बीच बनी बस्तियां सांसो में घोलती हुई एक जहरीली गैस तब इन आँखों से लहू की धरा फुट पड़ती है। मन करता है उखाड़ फ़ेंक दूँ उन हांथों को जो ये सब खेल खेलता है...
स्मृति
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हल्की सी बारिश हुई हल्की सी घटा छाई थी कुहाशे में डूबा शहर हलकी सी याद कोई आई थी। आहट जो हुई बहार खिड़की पर किसी की परछाई थी बाहर देखा झांक कर चाँद पर तुम ही मुस्कुरायी थी। जलता एक लौ सा मंदिर के एक दीवट पर जगता है आज भी मेरा मन जाने क्यों तेरे आहट पर। चित-विछत होकर भी एक योद्धा सा सोता है मन एक -एक लहू जो टपके तेरे ही स्मृति में अर्पण।