सच कड़वा होता है

कभी कभी मैं सोचता हूँ
क्या मैं दुनिया को उस महान ज्योति से दूर रख रहा हूँ ?
 जो मुझे प्राप्त है
जो मुझे सदेव आलोकित करते रहता है
जो दीप्तमान है मेरे अंदर।

कोई दीया जलाकर टोकरी से ढँक कर नहीं रखता
पर उसे दीवट पर रखता है
ताकि आने जाने  वाला उससे रोशनी पाए।
मैं अपने अंदर एक मसीहा को जिन्दा दफनाया हूँ।

जब वक्त वसंत का आता है
तो कोई वसंत को रोक नहीं सकता
उशी तरह एक महान सच को भी
चट्टानों से लम्बे समय के लिए
दफ्ना के रखा नहीं जा सकता।

वो मसीहा ! आज मेरे मुख से ज्योतिपुंज सा फुट पड़ा है।

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