पलास्टिक

एक शैतान जो भगवान बना बैठा है,
हजारों शक़्लों में उनकी मुखौटे हैं। 
जो अपनी जड़ें काफी मजबूत किए बैठा है ,
उनके कई दलालें हैं जो उसे सरोताज़ किये बैठें हैं। 

पलास्टिक , उससे बड़ा कोई देवता नहीं दीखता ,
काजू के पैकेट हो या चिप्स के पैकेट ,
या शालीमार के नारियल तेल के हो डिब्बे। 
हमारे रोम रोम में बस चुकी है ये पलास्टिक ,
मेरे पोर्टफोलियो के फाइल से लेकर 
न जाने कौन - कौन से चीजों में 
बिल कर चुकी है धुन की तरह अंदर और बाहर । 

आज तो उसी के ही ताजमहल हैं , उसी के ऐफिल टावर !
तो फिर मैं क्या कहूं?
आज तो वो भगवान के गले का हार भी बन बैठे हैं। 


© साहेब राम टुडू 
कोलकाता 01/04/2014 

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