हे भारत माँ! तुम कैसी माँ हो?

हे भारत माँ ! तुम कैसी माँ हो?
अपने संतानों से भेदभाव !
एक स्तन से अमृत,
तो दूसरे में से बिष क्यों पिलाती?

एक को पंडित,
तो दूसरे को अज्ञानी क्यों बनाती?
एक को न्यायमुर्ति,
तो दूसरे को अपराधी क्यों बनाती?

एक को अमीर तो दूसरे को गरीब,
एक को तृप्त तो दूसरे को भूखे रखती?
एक को निर्वस्त्र,
तो दूसरे को क्यों सुसज्जित करती?

हे माँ ! तुम कैसी माँ हो!
एक को ज्योति,
 और एक को अंधकार क्यों देती?
एक को आशीर्वाद,
 तो दूसरे को अभिशाप क्यों देती?

एक को हाथ,
और दूसरे से अंगूठा भी छीन लेती.
एक को राजा,
तो दूसरे को रंक क्यों बनती?

हे माँ ! तुम कैसी माँ हो !
एक के लिए उज्जवल भविष्य,
तो दूसरे के लिए नरक की कामना?
एक से स्नेह,
तो दूसरे से बैर की भावना।

तुम तो माँ हो, ऐसी भावना क्यों?
हृदय के टुकड़े तो दोनों ही हैं?
दोनों में तुम्हारा खून है,
फिर एक से प्रेम और दूसरे से घृणा क्यों है?

एक को स्वामी,
तो दूसरे को दास क्यों?
एक को राज सिंहासन,
तो दूसरे को वनवास क्यों ?

हे माँ तुम कैसी माँ हो?
एक स्तन से अमृत,
तो दूसरे में से बिष क्यों पिलाती?

माँ तुम जिन्दा हो !
या फिर मर गयी?
क्या तुम सुन रही
या फिर सुनना भी नहीं चाहती ?

ये कौन  सा वछ-स्थल है?
जो एक के मरने पर हँसती हो,
और दूसरे के मरने पर छाती पीटती हो.

माँ! क्या तुम मेरी माँ हो?

©साहेब राम टुडू
कोलकाता 2018




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