निशा

जब वक्त निशा की आती है
आसमां में सितारे  दीखते हैं।  
हम तो टुकड़े  चाँद हैं 
उस निशा में सैर करते है। 

खामोश है ये नाव मेरी 
 चुपके चुपके चलती है 
अपना एक टुकड़ा पाने को 
जाने कितने निशाएँ आती है।  

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Gur Pitha

जुग दो बोदोल एन।

Sculptor Sri Binod Singh (मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद सिंह)