विषाद का एक प्रासाद बनाया

विषाद का एक प्रासाद बनाया
आंसुओ की  मूरत
राग -वैराग्य का एक अलाप
उस मोक्ष कि क्या है सूरत ?

प्रेम-हेय कि इस वन में
हम सदियों गुजरते रहे
न मैंने तुम्हें ढूंढ पाया
न तुमने मुझे कभी देख पाए।

आशाओं की पाषाण शिखर से
जब तुम्हें आज हम देखते हैं ,
दूर तक सिर्फ रेखाएं हैं
बिंदु बने सिर्फ यहाँ हम पड़े हैं।

सिंधु की क्या है कीमत
एक बूंद जब हम जी न पाये ,
रीत -प्रीत की इस चन्द्र -क्रीड़ा में
प्रीत की एक बूंद पि न पाये।

हाथ में मेरे आज है
गर्ल का कटोरा ,
जीवन को पूर्ण विराम देने
क्या हो सकता है ये सहारा ?

हम क्षत - विक्षत युद्ध के सैनिक
पीते हैं औषधि के अंतिम बूँद
ओष्ठ दल में इसे रखे
लेते हैं आज आँखे मूँद।   

Comments

Popular posts from this blog

Jagannath Puri