स्वप्न

स्वप्न

एक स्वप्न नशा बन गया।
सालों पहले इन आँखों ने पिया था।
आज बंद आँखों ने चख लिया।

पंख सा हल्का ये शरीर आकाश में तैरता रहा।
पद्म कुसुम सा क्षीरसागर में डोलता रहा।
आज ओष्ठ पत्र पर शिशिर के कुछ बूंद गिरे।

नुपुर कि ध्वनि क्षितिज से सुनाई दी।
मैंने तो तरकश में बिष बाण रखे थे।
आज अनायास ही सहस्र कुसुम दल में बदल गई।

- साहेब राम टुडू

Comments

Popular posts from this blog

Jagannath Puri