Posts

विषाद का एक प्रासाद बनाया

विषाद का एक प्रासाद बनाया आंसुओ की  मूरत राग -वैराग्य का एक अलाप उस मोक्ष कि क्या है सूरत ? प्रेम-हेय कि इस वन में हम सदियों गुजरते रहे न मैंने तुम्हें ढूंढ पाया न तुमने मुझे कभी देख पाए। आशाओं की पाषाण शिखर से जब तुम्हें आज हम देखते हैं , दूर तक सिर्फ रेखाएं हैं बिंदु बने सिर्फ यहाँ हम पड़े हैं। सिंधु की क्या है कीमत एक बूंद जब हम जी न पाये , रीत -प्रीत की इस चन्द्र -क्रीड़ा में प्रीत की एक बूंद पि न पाये। हाथ में मेरे आज है गर्ल का कटोरा , जीवन को पूर्ण विराम देने क्या हो सकता है ये सहारा ? हम क्षत - विक्षत युद्ध के सैनिक पीते हैं औषधि के अंतिम बूँद ओष्ठ दल में इसे रखे लेते हैं आज आँखे मूँद।   

जब रेखाएं कहीं धूमिल हो गई

जब रेखाएं कहीं धूमिल  हो गई बिंदु कहीं मलिन तब तुम मुझे जाने क्यों याद आए ? हम अम्रकुञ्ज के नविन पुष्प सा पलाश के रक्तरंजित शाख सा हृदय में तुम्हें क्यों पाए ? टूट टूट कर सरित तट सा मिलने जब हम सागर को चले तुम दूर नहीं थे, पास ही खड़े क्यों पाये ? भिक्षा के जब पात्र बढ़ाये आशाओं के इस पात्र में स्वर्ण मुद्रा सी तुम्हें ही दीप्तमान पाए ! आज एक सूर्य से आलोकित है दिक्दिगंत मेरे तो फिर नव सूर्य हम क्यों बुलाए ? हृदय के इस सागर मंथन में जब प्रेम के दो चक्षु खोले हृदय घट में तुम ही समाए ! By - साहेब राम टुडू  

धोरोम दोई बागी आक बोना

लिन्जित ऐना मेत दाक दुलार , सोबोक ऐना नोवा ओनतोर। ओकोई चेतान रें  गोरोब इन दो धिनांग तुम्बुक ऐना बोहोक इनाक तिहिंग दुलार ! संथाल ! ओकोई रॊफा बोन आबो दो जोखों आबो रेन  होपोनएरा गे  बाबो उरुम दारे आको नित दो इनक गोरोब दो गुचाओ ऐना धोरोम नित दो अबोआ पाताल रे चलाऊ ऐना। संथाल आम  ठेन नोवा  गे  मचाक रोपोड़ तिहिंग सीता नायो लेका धोरोम दोई बागी आक  बोना  उनुमोक लागित राम लेका तैयार ताहे पे मानमी तिहिंग पंडरा होपोन लेका आबोआक संस्कृति निश्चय चाबाक ताबोना। तिहिंग बीरभूम रे काइ पासनाओ ऐना दुलार नित दो रॊफाई लागित आर चेक़ ताहे  ऐना ? तिहीं आबोयक  आचार-बिचार सानाम सोडोम लोटों ऐना आबोरेन हापराम को तिहिंग दो को देया केत  बोना। लिन्जित ऐना मेत दाक दुलार , सोबोक ऐना नोवा ओनतोर। ओकोई चेतान रें  गोरोब इन दो धिनांग तुम्बुक ऐना बोहोक इनाक तिहिंग दुलार !

तारा

भीगी- भीगी नमी- नमी सी हैं रातें जली- जली बुझी- बुझी सी हैं सांसे ओश से बिखरे हुए हैं अरमान धुली -धुली, घुली- घुली सी हैं आसमान पत्रदल सी शिथिल हैं यादें अधखिली सी हैं फर्यादें भीगे हुए तितली सी है ये मन लताओं के बीच फसी हुई हैं यादें गंभीर रेगिस्तान सा पड़ा है ये मन किसी संदूक में पड़ा हो कोई हीरा टुटा असमान से कोई तारा दूर कहीं हो अलग जा गिरा ...

एक भविष्यद्वक्ता

एक भविष्यद्वक्ता ने मुझसे कहा- " जानते हो साहेब ! तुम्हारी जाति 25 वर्षों में विलुप्त होने वाली है। " मेरे आँखों के सामने मुझे लगा  ये व्यक्ति मेरे मुख पर थूक रहा है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा। मैं जानता हूँ कितनी पुरानी संस्कृति है हमारी फिर रही है मारी  मारी कहीं उसकी बात सच न हो जाये ! मैं  तो चाँद सौदागर कि तरह लोहे का घर बनाने चला हूँ। पर मुझे विश्वास है भविष्यद्वक्ता के  हिसाब से मरेगी  जरुर लेकिन पुनर्जन्म भी लेगी। मैं नव विवाहित संगी हूँ। सति बेहुला कि तरह मैं अपनी संस्कृति को कभी नहीं छोडूंगा। चाहे मुझे जितना कष्ट क्योँ न उठाना पड़े। और विश्वास है मैं उसे जीवित फिर से देख पाउँगा। इससे ज्यादा वैभव और समृद्ध। जिस तरह चाँद सौदागर ने पाया था। -साहेब राम टुडू 

आत्मा

मैंने पढ़ा है। आत्मा कभी नहीं मरती , न सड़ती , न गलती , न सूखती है , न जलती है। पर मैंने एक संस्कृति के आत्मा को मरते देखा है। क्या मैंने कोई दुःस्वप्न देखा या कोई हकीकत है ? और मैं जानता  हूँ ये सपना हर दिन भारतवर्ष के लोग देखते हैं। -साहेब राम टुडू

एक इतिहास

एक इतिहास मिटने जा रहा हूँ जो मेरे वर्तमान को बनाने से रोकती है कोई जो मुझे बार बार मेरा इतिहास दिखता है। कोई है जो मुझे बार बार मेरा इतिहास स्मरण करता है। है एक भारत ! जो मुझे हमेशा अंधकार में रखना चाहता है पर वो जानता नहीं मैं स्वयं आग हूँ और आग को अंधकार घेर नहीं सकती मैं उज्जवल और दीप्तमान हूँ। और मुझे पता है जहाँ मैं स्थापित हो जाऊ वहीँ से मेरा वर्त्तमान शुरू हो जाता है और मुझे मेरा इतिहास दिखाने  कि जरुरत नहीं क्योंकि वो इतिहास मेरा खुद का बनाया नहीं दूसरों के बनाये गए हैं।