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Showing posts from April, 2014

निशा

जब वक्त निशा की आती है आसमां में सितारे  दीखते हैं।   हम तो टुकड़े  चाँद हैं  उस निशा में सैर करते है।  खामोश है ये नाव मेरी   चुपके चुपके चलती है  अपना एक टुकड़ा पाने को  जाने कितने निशाएँ आती है।  

धड़कन

एक जिन्दा मछली सी होती है धड़कन हल्की सी  साँस  लेती हुई कुछ गुब्बारें छोड़ती हुई।

नाम

कापते हैं हाथ मेरे नाम अब अपना लिखते हुए। कापते हैं हाथ मेरे  नाम अब तेरे लिखते हुए ।। कुछ खुले से पन्ने थे, कुछ शब्द बिखरे पड़े थे। कुछ शब्द मैंने पढ़े , कुछ शब्द तुमने चुराए। कांपते हैं  ओठ मेरे वो शब्द कहते हुए। कापते हैं ओठ मेरे नाम अब तेरे लेते हुए।। - साहेब राम टुडू