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Showing posts from October, 2013

स्वप्न

स्वप्न एक स्वप्न नशा बन गया। सालों पहले इन आँखों ने पिया था। आज बंद आँखों ने चख लिया। पंख सा हल्का ये शरीर आकाश में तैरता रहा। पद्म कुसुम सा क्षीरसागर में डोलता रहा। आज ओष्ठ पत्र पर शिशिर के कुछ बूंद गिरे। नुपुर कि ध्वनि क्षितिज से सुनाई दी। मैंने तो तरकश में बिष बाण रखे थे। आज अनायास ही सहस्र कुसुम दल में बदल गई। - साहेब राम टुडू

सुर

बहुत दिन पहले एक संगीत मैंने खो दिया था हड्डपा और मोहनजोदड़ो  के सभ्यता में... आज उसे मैंने फिर से पाया है किन्तु उस संगीत का सुर मैं भूल गया हूँ। इस संगीत का सुर न खोज कर आर्य और अनार्य के बीच लड़ाई शुरू हो गई - ये मेरा है ! ये मेरा है ! ये मेरा है ! -साहेबराम टुडू 

शांत प्रशांत महासागर

लोग कभी मरना नहीं चाहता , जवान कभी बुड्ढा नहीं होना चाहता। उसी तरह समय भी अतीत में नहीं वर्तमान बनकर वापस आता है। जो शांत बैठा समुद्र है वो फिर से मंथन करने बैठता है। लोग अचंभित होतें हैं कि शांत प्रशांत महासागर आज हिमालय की तरह खड़ी होकर आकाश क्यों ढँक रही है ?

पत्थर

पत्थर ने कभी नहीं सोचा , वो भगवान बन जाएगा। लोग उसमे सर टिकाएंगे या अपना सर फोड़ डालेंगे। आग निकालेंगे या बाग सजायेंगे। वो हमेशा ही पत्थर रहा , सब बना बनाया है इन्सान का। उसने चाहा तो छत पर लगाया उसने चाहा तो चौखट पर लगाया। कभी बुत तो कभी ताबूत  बनाया। हाँ, पत्थर ने इन्सान को आश्रय और आहार जरुर दिया। शायद इसी की कृतज्ञता आज भी वो अदा कर रहा है।