Posts

Showing posts from September, 2013

पाप प्रच्छालन

लोग पाप धुलने के लिए गंगा में जाने कितने बार डूबकी लगाते हैं ? पर पाप कभी  धुलता ही नहीं। शायद सर्फ़ एक्सेल से धुल जाई। गंगा मुस्कुराती और कहती है - रे मुरख ! मुझे पता है तू घर जाकर फिर से नहाने वाला है तो फिर क्यों यहाँ ढोंग करता है। _साहेबराम टुडू 

६६ वर्ष

६६ वर्ष हम नंगे सोये, भूखे और प्यासे रहे। मेरी कोख में पलते गर्भस्त शिशु  पैदा होने से पहले मर गया। कोई देबी माँ नहीं आई। आज एक कहाँ से दयामयी माँ प्रकट हुई ? मेरे हाथ में एक रुपया  डाल  के चली गयी। बोली कल मैं फिर आऊँगी इसी तरह तब तक के लिए हाथ फैलाये खड़ी  रहना। मैं गर्मी में , बरसात में, ठिठुरते ठंड में खड़ी रही कि वो करुणामयी माँ दया की बारिश करेगी आज वो आई। जो रुपया उसने कल मेरे हाथ में दिए थे वापस लेके चली गई। -साहेब राम टुडू

मैं कौन हूँ ?

हे भगवान ! बताओ मैं कौन हूँ ? क्या मैं बिरसा हूँ ! क्या मैं सिद्धो हूँ ! क्या मैं कान्हु हूँ ! या फिर मैं तिलका हूँ ! बताओ मैं कौन हूँ ? क्योंकि मेरे अन्दर भी ऐसे ही आग धधक  रही है। -साहेब राम टुडू