कुछपल

कुछ रहस्यमय सी दिन है ,
कुछ याद तुम्हारी आ रही,
कहीं मेघ तो नहीं जमे  पर
पर मेघों का घर में हूँ ऐसे लग रहा ।

खेत में कुछ सिर्गुजिया के फुल खिले है।
कुछ रंगबिरंगे तितलियाँ उड़ रहीं हैं .
दूर किसी कपोत की कू कू की आवाज
इस तनहा मन में एक रस घोल रहीं हैं .

कुछपल तुम्हारे पास बैठूं
कुछ अच्छी अच्छी बातें करूँ
जैसे दीवाल में गढ़े  गए दो प्रेमयुगल  की तरह
मैं हमेशा शिल बद्ध तो नहीं हो सकता
पर एक निर्झर सा बहते रहना पसंद करता हूँ  ...

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