जिन्दा हूँ

एक जिन्दा पिरामिड है शरीर
यांदे  भी जिन्दा है
साँस भी जिन्दा है
चाहत एक परिंदा है...

उडती है क्षितिज के फलक तक
अम्बर के असीम झोली में गान है
किरणों सा पंख है मेरा
सूर्य सा जलता ये  मन  है ...

गुजरने वाली हवा
ये मत समझना
एक ताबूत बना के चल दोगे
हम अपनी कहानी अम्बर में लिखते हैं.



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