पत्थर

पत्थर ने कभी नहीं सोचा ,
वो भगवान बन जाएगा।
लोग उसमे सर टिकाएंगे या
अपना सर फोड़ डालेंगे।

आग निकालेंगे या
बाग सजायेंगे।
वो हमेशा ही पत्थर रहा ,
सब बना बनाया है इन्सान का।

उसने चाहा तो छत पर लगाया
उसने चाहा तो चौखट पर लगाया।
कभी बुत तो
कभी ताबूत  बनाया।

हाँ, पत्थर ने इन्सान को
आश्रय और आहार जरुर दिया।
शायद इसी की कृतज्ञता
आज भी वो अदा कर रहा है। 

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