योग

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६- ५॥

सवयंम से अपना उद्धार करो,
सवयंम ही अपना पतन नहीं।
मनुष्य सवयंमही अपना मित्र होता है
और सवयंम ही अपना शत्रू।

Comments

Popular posts from this blog

जुग दो बोदोल एन।

Gur Pitha

Sculptor Sri Binod Singh (मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद सिंह)