६६ वर्ष

६६ वर्ष हम नंगे सोये, भूखे और प्यासे रहे।
मेरी कोख में पलते गर्भस्त शिशु
 पैदा होने से पहले मर गया।
कोई देबी माँ नहीं आई।

आज एक कहाँ से दयामयी माँ प्रकट हुई ?
मेरे हाथ में एक रुपया  डाल  के चली गयी।
बोली कल मैं फिर आऊँगी
इसी तरह तब तक के लिए हाथ फैलाये खड़ी  रहना।

मैं गर्मी में , बरसात में, ठिठुरते ठंड में
खड़ी रही कि वो करुणामयी माँ दया की बारिश करेगी
आज वो आई।
जो रुपया उसने कल मेरे हाथ में दिए थे वापस लेके चली गई।

-साहेब राम टुडू

Comments

Popular posts from this blog

जुग दो बोदोल एन।

Gur Pitha

Sculptor Sri Binod Singh (मूर्तिशिल्पी आचार्य श्री बिनोद सिंह)