मेरी परछाई
मेरी परछाई मुझसे लम्बी क्यों
बीच शहर में खड़ा पथिक अपनी
परछाई से पूछता है
मैं तो एक ही हूँ
मेरी हजारों परछाई क्यों ?
मुझे जानने वाले हजारों यहाँ
अपने कहलाने वाले इतने कम क्यों ?
मैं हजारों पंख लेके आया था
आज एक पंख क्यों ?
गांव से आते-आते
रस्ते में मेरे पैर गीले थे
आज वो सुख गए हैं चलते चलते ...
बीच शहर में खड़ा पथिक अपनी
परछाई से पूछता है
मैं तो एक ही हूँ
मेरी हजारों परछाई क्यों ?
मुझे जानने वाले हजारों यहाँ
अपने कहलाने वाले इतने कम क्यों ?
मैं हजारों पंख लेके आया था
आज एक पंख क्यों ?
गांव से आते-आते
रस्ते में मेरे पैर गीले थे
आज वो सुख गए हैं चलते चलते ...
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