मेरी परछाई
मेरी परछाई मुझसे लम्बी क्यों बीच शहर में खड़ा पथिक अपनी परछाई से पूछता है मैं तो एक ही हूँ मेरी हजारों परछाई क्यों ? मुझे जानने वाले हजारों यहाँ अपने कहलाने वाले इतने कम क्यों ? मैं हजारों पंख लेके आया था आज एक पंख क्यों ? गांव से आते-आते रस्ते में मेरे पैर गीले थे आज वो सुख गए हैं चलते चलते ...