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Showing posts from December, 2013

एक भविष्यद्वक्ता

एक भविष्यद्वक्ता ने मुझसे कहा- " जानते हो साहेब ! तुम्हारी जाति 25 वर्षों में विलुप्त होने वाली है। " मेरे आँखों के सामने मुझे लगा  ये व्यक्ति मेरे मुख पर थूक रहा है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा। मैं जानता हूँ कितनी पुरानी संस्कृति है हमारी फिर रही है मारी  मारी कहीं उसकी बात सच न हो जाये ! मैं  तो चाँद सौदागर कि तरह लोहे का घर बनाने चला हूँ। पर मुझे विश्वास है भविष्यद्वक्ता के  हिसाब से मरेगी  जरुर लेकिन पुनर्जन्म भी लेगी। मैं नव विवाहित संगी हूँ। सति बेहुला कि तरह मैं अपनी संस्कृति को कभी नहीं छोडूंगा। चाहे मुझे जितना कष्ट क्योँ न उठाना पड़े। और विश्वास है मैं उसे जीवित फिर से देख पाउँगा। इससे ज्यादा वैभव और समृद्ध। जिस तरह चाँद सौदागर ने पाया था। -साहेब राम टुडू 

आत्मा

मैंने पढ़ा है। आत्मा कभी नहीं मरती , न सड़ती , न गलती , न सूखती है , न जलती है। पर मैंने एक संस्कृति के आत्मा को मरते देखा है। क्या मैंने कोई दुःस्वप्न देखा या कोई हकीकत है ? और मैं जानता  हूँ ये सपना हर दिन भारतवर्ष के लोग देखते हैं। -साहेब राम टुडू

एक इतिहास

एक इतिहास मिटने जा रहा हूँ जो मेरे वर्तमान को बनाने से रोकती है कोई जो मुझे बार बार मेरा इतिहास दिखता है। कोई है जो मुझे बार बार मेरा इतिहास स्मरण करता है। है एक भारत ! जो मुझे हमेशा अंधकार में रखना चाहता है पर वो जानता नहीं मैं स्वयं आग हूँ और आग को अंधकार घेर नहीं सकती मैं उज्जवल और दीप्तमान हूँ। और मुझे पता है जहाँ मैं स्थापित हो जाऊ वहीँ से मेरा वर्त्तमान शुरू हो जाता है और मुझे मेरा इतिहास दिखाने  कि जरुरत नहीं क्योंकि वो इतिहास मेरा खुद का बनाया नहीं दूसरों के बनाये गए हैं। 

शिशु

मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का गर्व जो  पिरामिड सा खड़ा है चूर चूर चूर हो जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का साहस जो चीनी दीवाल सा खड़ा है टूट टूट टूट बिखर जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो किसी का धैर्य जो असीम महासागर सा लहरा रहा है रेत में गिरे पसीने सा विलीन हो जायेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो मंदिर का पुरोहित धर्म का नाशक समझ प्रसाद पात्र में बिष मुझे प्रदान  करेगा। मैं अगर उसे प्यार करूँ तो मैं मैं नहीं रहूँगा ज्यों अग्नि कुंड में मिलके तिनका भी आग में बदल जाता है। वो कोई और नहीं एक शिशु है जो चरनी में लेटा है असीम आह्लाद लिए मुस्कुरा रहा है।

जब कभी विचार मरता है

जब कभी विचार मरता है जब कभी एक समाज मरता है तो इस मरे हुए लाश  को खाने के लिए गिद्ध चारों और से जमा हो जाते  हैं। वैसे ही कुछ हाल संथाल समाज का है। इसे मार -मार  कर खाने वालों की गिद्ध की  संख्या बढ़ गयी है। आज कल वो जिन्दा गायों पर भी आक्रमण करना शुरु कर दिया है

जब वो बीमार थी

जब वो बीमार थी मैं गया था उससे मिलने। मैं उनके खाट  के पास बैठा था। उसकी शरीर शाहजहां के अंतिम तस्वीर सी पतित हो रही थी। मैं उन्हें बुद्ध कि प्रतिमा भेंट की जो सारनाथ से लाया था। प्रार्थना में कभी जीसस को तो कभी बुद्ध को याद किया। हे भगवन ! ये चंगी हो जाये। वो चंगी हुई थी एक मास के लिए भगवन ने सुनी थी मेरी प्रार्थना ! पर अचानक एक दिन वो नहाई धोयी और अच्छे कपडे पहनी। सो गयी उसी पुरानी  खाट  पर और उसके बाद कभी नहीं उठी। तब से न जाने मेरा मन अब किसी के लिए खास प्रार्थना  नहीं करता। एक दम घुट सा गया है , कहीं मछली के कांटे सा फंस गया है। अब जिह्वा किसी के लिए खास प्रार्थना नहीं करता।

पारश पत्थर

पारश पत्थर मुझे एक पारश पत्थर मिला था , और मैं मूर्ख ! सदा ही पैरों के मैल उससे साफ करता रहा। By Saheb Ram Tudu

संग में मेरे

संग में मेरे जब देश दूर होता है भाषा दूर होती  है। तो लगता है माँ - बाप दूर हो गए। जब हवा दूर होती है , बताश दूर होता है। तो लगता है भाई - बहन दूर हो गए। शून्य में ताकता एक इन्सान अपने आप से पुछता है। क्या था मेरा और क्या रह गया संग में मेरे … By- Saheb Ram Tudu