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Showing posts from August, 2011

मंजिल

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मधुर स्मृति

आज भी मधुर स्मृति इस कदर बसे हुए हैं जैसे नदी का ठंडा पानी हो जैसे जंगल का कोई हवा हो खुसबू कोई पंकज सरोवर से आती हुई हवा हो। पर जो छवि ह्रदय पटल पर बसी है॥ वो आज भी मुझे इतने प्रिय हैं कि शुष्क धरा में वो हरियाली देख रहा हूँ सुखी शाख में पत्रदल देख रहा हूँ। खामोश पत्थर में भी एक मूरत देख रहा हूँ इतनी खुशियाँ भरी है धरा में के हर घट में अमृत देख रहा हूँ।

सपना

सोये हुए आँखों में किसी ने दृश्य डाल के चले दिए कह गए क्षितिज रेखा कुछ आक रही है मेरे लिए और मैं सोते गया किसी खुशनुमा स्वप्न में और जब आंखे खोली तो बहुत सुनसान थी ये दुनिया mere चारों और रेगिस्तान था बड़ी तलासने के बाद कहीं गुफा मिला और फिर से मैंने अपने क्षितिज में छवि आकना शुरू किया ...

अरमान

कुछ अरमान कहने के लिए दिल में नहीं रहे कुछ छुपाने के लिए कुछ भीगे से कुछ घास के शिशिर कण से आज धीरे से जमीं पर गिर गए बड़ी दूर कुछ शब्द सुनाई दे रहे थे सुनने कि कोशिश किया पर सुन नहीं पाया और खो गया मैं अपने ही दुनिया में कुछ कड़वाहट सा दिल में लिए हुए जहर नील रंग का घोले हुए आज क्षितिज की और देखता कि कुछ अमृत कहीं से आ गिरे ... पर दिल धुंआ से भरा हुआ दम कहीं घुटता सा लग रहा है नाग अपना विष फैला रही हो और मैं मौन चित पड़ा हूँ जैसे उम्र का एक -एक क्षण बड़े मुस्किल से गुजर रहें हों ... मुस्कुराने के पल कम थे और मैं अडिग पत्थर सा युहीं जी रहा था जैसे मैं कोई हिमालय का शिखर हूँ पर शिखर के बर्फ भी कभी कभी पिघल जाया करते हैं...

हंसी हो गयी पत्थर

हंसी हो गयी पत्थर आँखे सजल हो उठी शांत जो था हृदय आज गर्जन करने लगा । उठती गिरती हृदय कि लहरें टकरा गयी किनारों से  और  पहली बूंद जो गिरा जमीं पार बाढ़ आ गयी धरा पर और  रोंदने कि कोशिश के साथ आग कि लपट कि तरह फैल गयी ये खाली आसमान में एक हुंकार  मारा  और  ढँक दिया पृथिवी सिर्फ ये तो एक उफान था ये उफान बार- बार मेरे दिल में उठती रहती हैं जब दिखती है लाखों चेहरे  कोयले कि धुल में सने  और  तेज धुप में जलते जैसे कोई गरम किया कढ़ाई में   मछलियों सा इन्हें डुबो रही है  उन तपती  हुई खदानों के बीच बनी बस्तियां  सांसो में घोलती हुई एक जहरीली गैस तब इन आँखों से लहू की धरा फुट पड़ती है। मन करता है उखाड़ फ़ेंक दूँ उन हांथों को जो ये सब खेल खेलता है...

चाँद-२

मैंने चाँद से एक टुकड़ा अम्बर माँगा उसने आधा अम्बर फाड़ कर मुझे दिया मैंने उनके कागज के कस्तियाँ बनायीं कागज के फुल, पंक्षी ,पंखें तथा जहाज बनाया तारों को मैंने कश्तियों में भर कर खूब ब्यापार किया आज मैं चाँद दोनों साथ साथ खेलते हैं चाँद मेरे कस्ती से खेलता है तो मैं उनके तारों से....

चाँद

हजार टुकड़े किये मैंने चाँद के जला दिए फिर मैंने आग में आज जाने क्यों ????????? उनकी फिर याद आ गयी पास फैला राख को देखा तो खाक में मैं खड़ा था और अन्दर एक चाँद घोर निशा में छट-पटा रहा था....

एक मंदिर

एक मंदिर बनाने में सदियों लग गयी कई कारीगर आये कई शिल्पी आये कई वास्तुविद और कई रातें मैंने सोया नहीं कई रातें मैंने खाए नहीं । आज आंखे फिर जागती हैं कि कहीं बनी मंदिर न टूट जाये...

स्मृति

हल्की सी बारिश हुई हल्की सी घटा छाई थी कुहाशे में डूबा शहर हलकी सी याद कोई आई थी। आहट जो हुई बहार खिड़की पर किसी की परछाई थी बाहर देखा झांक कर चाँद पर तुम ही मुस्कुरायी थी। जलता एक लौ सा मंदिर के एक दीवट पर जगता है आज भी मेरा मन जाने क्यों तेरे आहट पर। चित-विछत होकर भी एक योद्धा सा सोता है मन एक -एक लहू जो टपके तेरे ही स्मृति में अर्पण।